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स्वामी विवेकानंद और बंदरों की कहानी - एक अनमोल सीख

इस कहानी में पढ़िए कैसे स्वामी विवेकानंद का बंदरों से सामना हुआ और भागने के बजाय उनका डटकर मुकाबला करने से उन्हें सफलता मिली।

स्वामी विवेकानंद और बंदरों की कहानी - एक अनमोल सीख

 स्वामी विवेकानंद और बंदरों की कहानी - एक अनमोल सीख - Hindi Story

एक बार स्वामी विवेकानंद को बंदरों का सामना करना पड़ा था। वह इस आप बीती को कई अवसरों पर बड़े चाव के साथ सुनाया करते थे। इस अनुभव का लाभ उठाने की बात भी करते थे।

उन दिनों स्वामी जी काशी में थे, वह एक तंग गली में गुजर रहे थे। सामने बंदरों का झुंड आ गया। उनसे बचने के लिए स्वामी जी पीछे को भागे। परंतु वे उनके आक्रमण को रोक नहीं पाए। बंदरों ने उनके कपडे तो फाड़े ही शरीर पर बहुत-सी खरोंचें भी आ गईं। दो-तीन जगह दांत भी लगे। शोर सुनकर पास के घर से एक व्यक्ति ने उन्हें खिड़की से देखा तुरंत कहा- “स्वामी जी! रुक जाओ, भागो मत। घूंसा तानकर उनकी तरफ बढ़ो। “स्वामी जी के पांव रुके। घूंसा तानते हुए उन्हें ललकारने लगे। बंदर भी डर गए और इधर-उधर भाग खड़े हुए। स्वामीजी गली को बड़े आराम से पार कर गए।

इस घटना को सुनाते हुए स्वामी जी अपने मित्रों तथा शिष्यों को कहा करते- “मित्रो! हमें चाहिए कि विपरीत हालात में डटे रहें, भागें नहीं। घूंसा तानें। सीधे हो जाएं। आगे बढ़ें। पीछे नहीं हटें। कामयाबी हमारे कदमों में होगी।” वास्तव में समस्या पलायन से नहीं सामना करने से खत्म होती है। भागने वालों का समस्या बंदर की भाँति पीछा करती है।

शिक्षा: समस्याओं से भागने के बजाय उनका सामना करें।